भारतीय किशोर हैं दुनिया के चुस्त किशोर

भारतीय किशोर हैं दुनिया के चुस्त किशोर

नरजिस हुसैन

भारत के युवा काफी चुस्त और शारीरिक तौर से सक्रिय हैं। ऐसा कहना है लैंसेट-विश्व स्वास्थ्य संगठन के साझा अध्ययन का जिसमें यह भी बताया गया है कि किस तरह दुनिया के बाकी देशों के नौजवान सुस्त होने के कारण अपना वर्तमान और भविष्य जोखिम में डाल रहे हैं। अपनी तरह का ऐसा पहला अध्ययन 11-17 साल के किशोर लड़के और लड़कियों पर किया गया है। इस अध्ययन में जहां दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे किशोरों को शारीरिक रूप से चुस्त रहने का सुझाव दिया गया है वहीं दूसरी तरफ भारत के युवाओं को इसके लिए सराहा है।

भारत में युवाओ के चुस्त रहने के कई कारण माने जा सकते हैं। खेलो इंडिया भारत सरकार की खेल से जुड़ी एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है जो मुख्यतः स्कूल के अंडर-17 और कॉलेज के अंडर-21 के छात्रों के लिए आयोजित किया जाता है। 31 जनवरी, 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी शुरूआत की थी। भारत सरकार इसको सिर्फ खेल के ही तौर पर नहीं बल्कि जोखिम लेने की ट्रेनिंग, लेडरशिप ट्रेनिंग, सामाजिक और समरुपता का भाव और सामुहिक प्रयासों से सफलता हासिल करने की ट्रेंनिंग की नजर से भी देखती है।

खेलो इंडिया कार्यक्रम भारत में खत्म होती खेल परंपरा को दोबारा से जिंदा करने की सरकार की सराहनीय कोशिश है। यह न सिर्फ शहरों बल्कि गांवों, देहातों और दूर-दराज के इलाकों में सब जगह लागू है। इसमें स्कूल के साथ-साथ कॉलेज के युवा भी हिस्सा लेते हैं। और यही बड़ी वजह है कि देश में युवा काफी चुस्त और तंदुरुस्त हैं। दूसरी वजह यह भी है कि देश में आज भी ज्यादातर काम हाथों से किया जाता है और शहर तो नहीं लेकिन हां ग्रामीण भारत में चलना कोई वर्जिश नहीं बल्कि एक तरह से मजबूरी है क्योंकि यातायात के साधन वहां सबके पास नहीं हैं।

अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर के करीब 80 फीसदी स्कूल जाने वाले बच्चे मौजूदा पैमानों पर नहीं उतरते। इन किशोर लड़के-लड़कियों को एक दिन में कम-से-कम एक घंटा रोज कसरत करनी चाहिए। दुनिया के कुल 85 प्रतिशत लड़कियां और 78 फीसद लड़के शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हैं। ये अध्ययन 146 देशों के 11-17 साल के 16 लाख किशोरों पर किया गया है। 2001-2016 के बीच किए गए अध्ययन को आप यहां पढ़ सकते हैं। https://www.thelancet.com/journals/lanchi/article/PIIS2352-4642(19)30323-2/fulltext

अध्ययन में अलगअलग देशों के युवाओं की तुलना करते हुए कहा गया है कि सबसे ज्यादा असक्रिय किशोर लड़के (93 प्रतिशत) फिलीपींस के हैं। वहीं दक्षिण कोरिया की 97 फीसद किशोर लड़कियां शारीरिक कसरत नहीं कर पा रही थी। तो कुल मिलाकर विकसित देशों या यूं कहें कि आर्थिक रूप से सपंन्न देशों में ये समस्या ज्यादा है। दक्षिण एशिया में भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में राष्ट्रीय खेल क्रिकट वगैरह युवाओं में ज्यादा लोकप्रय है और जो गली मोहल्लों से लेकर गांव देहात सभी जगह खेला और पसंद किया जाता है।

हालांकि इन्हीं दोनों देशों यानी भारत और बांग्लादेश में किशोर लड़कियों में अध्ययन से पता चला कि शारीरिक सक्रियता कम है। वजह, दोनों ही देशों में किशोर लड़कियों को घर के काम-काज में हाथ बंटाने में लगा दिया जाता है। 2001 में भारत में किशोर लड़कियों में असक्रियता का आंकड़ा 76.6 प्रतिशत था जो 2016 में गिरकर 76.3 फीसद हो गया। थोड़ा ही सही एक लंबे वक्त के बाद कुछ बदलाव तो आया। भारत में 2001 में कुल 76.6 प्रतिशत किशोर सुस्त थे जो 2016 तक 73.9 घट गए।

जानकारों का कहना है कि किसी भी तरह की शारीरिक मेहनत जैसे भागना, चलना, साइकिल चलाना युवाओं के लिए जरूरी है क्योंकि इसी कमी से युवाओं में सबसे तेजी से असंचारित बीमारियां यानी नॉन कम्युनिकेबल डिजीज जैसे दिल की बीमारियां, रक्तचाप, डायबिटीज, ब्रेस्ट कैंसर वगैरह फैल रहा है। अध्ययन में लगे शोधकर्ताओं का कहना है कि खेल कूद के मौके देने से किशोर लड़कों में तो इन बीमारियों को फैलने से रोका जा सकता है लेकिन, किशोरियों को इससे ज्यादा माहौल देने की जरूरत है। खान-पान से लेकर, पढ़ाई, खेल-कूद के सुरक्षित मौके न सिर्फ सरकार बल्कि समाज को भी किशोरियों को देना होगा।

देश में ज्यादातर लड़कियां खेल-कूद में आगे इसलिए नहीं बढ़ पाती क्योंकि न तो उन्हें घर से उत्साह मिलता है और न ही स्कूल या समाज उन्हें खेल के सुरक्षित अवसर दे पाता है। ऐसे में ये किशोरियां चाह होकर भी घर में कैद होकर रह जाती हैं। तो सरकार की जिम्मेदारी तय करने के साथ ही हम सबको अपनी भी जिम्मेदारी अब तय करनी होगी।

 

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